蘇軾有一首詞《定風波》:“莫聽穿林打葉聲,何妨吟嘯且徐行。竹杖芒鞋輕勝馬,誰怕?一蓑煙雨任平生……”讀來讀去,我讀出了兩個字:淡定。
一個人進入了淡定的境界,他對物質享受的追求、對他人計謀的警惕、對名聲大小的關注,都會變得很輕了。這種淡然、安定,似乎是一種閑散,閑散中有著無需和他人攀比的自傲;似乎是一種自然,天人合一,物我無別。
人在年輕的時候往往是血氣方剛,不知道天高地厚,總認為自己什么都可以做到,中年后發現必須腳踏實地做點兒事情。如果沒有成就,老的時候會后悔。而進入老年的時候,忽然感到該干什么就干什么,世界萬物本來就是一個定數,人生其實只是一個過程,每個人不過是個匆匆過客。“寧靜而致遠”也罷,“難得糊涂”也罷,只是說法不同而已,內心其實已經是一種淡定。
所謂淡定,也指在名利誘惑面前不為所動的淡泊精神,得之淡然,失之泰然。太史公有言:“天下熙熙,皆為利來;天下攘攘,皆為利往。”乾隆問和 主站蜘蛛池模板: | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | | |